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अद्वैत वेदान्त

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    अद्वैतवेदान्तनय में आत्मतत्त्व के प्रसङ्ग में आत्मा को साक्षी कहा गया है। साक्षी का सामान्य अर्थ है- "द्रष्टृत्वे सति उदासीनत्वम्" अर्थात् जो द्रष्टा होते हुए भी उदासीन हो। लोक में भी दो जनों के मध्य विवाद में साक्षी के रूप में उसको ही ग्रहीत किया जाता है, जो विवाद को जानता तो हो, पर उसमें संलिप्त न हो। उसी प्रकार अद्वैतनय में भी आत्मा को भी साक्षित्वेन स्वीकार किया गया है। कठोपनिषद् के वर्णित है- सूर्यो यथा सर्वलोकस्य चक्षुर्न लिप्यते चाक्षुषैर्बाह्यदोषैः। एकस्तथा सर्वभूतान्तरात्मा न लिप्यते लोकदुःखेन बाह्यः।।                                                    {कठ.उप.-2/2/11}   अर्थात् जैसे एक ही सूर्य सब लोगों की आँख है, अच्छी-बुरी सभी वस्तुओं का प्रकाश सूर्य से ही होता है, तथापि वह बाह्य दोषों से लिप्त नहीं होता है...

भगवान् शिव

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                         ।। श्री परमात्मने नमः।।  नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च। मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।।         शिव समस्त जगत् के आधार हैं। श्रुतियों में शिव तत्त्व का बहुतायत वर्णन हुआ है। महाकवि कालिदास ने कुमारसम्भव महाकाव्य के द्वितीय सर्ग में भगवान् शिव को जगत् की उत्पत्ति, स्थिति एवं लय का कारण प्रतिपादित किया है-              नमस्त्रिमूर्तये तुभ्यं प्राक्सृष्टेः केवलात्मने।              गुणत्रयविभागाय पश्चाद्भेदमुपेयुषे।।        अभिज्ञानशाकुन्तलम् के मंगलाचरण में महाकवि स्तुति करते हैं- या सृष्टिः स्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री,       ये द्वे कालं विधत्तः श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम्। यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति यया प्राणिनः प्राणवन्तः,        प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः।।       ...

संस्कृत सुभाषितम्

शैले शैले न माणिक्यं मौक्तिकं न गजे गजे। साधवो न हि सर्वत्र चन्दनं न हि वने वने।। =प्रत्येक पर्वत पर मणि माणिक्य प्राप्त नहीं होते, न ही प्रत्येक हाथी के मस्तक से मौक्तिक (मुक्तामणि) प्राप्त होती है। संसार में अनेक मनुष्य होने पर भी साधु पुरुष कम ही होते हैं, एवम् सभी वनों में चन्दन के वृक्ष भी प्राप्त नहीं होते हैं।                              🙏हर हर महादेव🙏