भगवान् शिव
।। श्री परमात्मने नमः।।
नमः शम्भवाय च मयोभवाय च नमः शंकराय च।
मयस्कराय च नमः शिवाय च शिवतराय च।।
शिव समस्त जगत् के आधार हैं। श्रुतियों में शिव तत्त्व का बहुतायत वर्णन हुआ है। महाकवि कालिदास ने कुमारसम्भव महाकाव्य के द्वितीय सर्ग में भगवान् शिव को जगत् की उत्पत्ति, स्थिति एवं लय का कारण प्रतिपादित किया है-
नमस्त्रिमूर्तये तुभ्यं प्राक्सृष्टेः केवलात्मने।
गुणत्रयविभागाय पश्चाद्भेदमुपेयुषे।।
अभिज्ञानशाकुन्तलम् के मंगलाचरण में महाकवि स्तुति करते हैं-
या सृष्टिः स्रष्टुराद्या वहति विधिहुतं या हविर्या च होत्री,
ये द्वे कालं विधत्तः श्रुतिविषयगुणा या स्थिता व्याप्य विश्वम्।
यामाहुः सर्वबीजप्रकृतिरिति यया प्राणिनः प्राणवन्तः,
प्रत्यक्षाभिः प्रपन्नस्तनुभिरवतु वस्ताभिरष्टाभिरीशः।।
इस प्रकार प्रत्यक्ष अष्टमूर्ती शिव की स्तुति की है। महाकवि शूद्रक, बाणभट्ट आदि कवियों ने अनेक प्रकार से स्तुति करते हुए काव्यों की रमणीयता का बृंहण किया है। स्तोत्रपरम्परा को देखने पर अगणित शिवसम्बन्धित स्तोत्र प्राप्त होते हैं। इस परम्परा में सर्वप्रथम आचार्य पुष्पदन्तप्रणीत शिवमहिम्नस्तोत्र दृष्टिगोचर होता है। इसकी रमणीयता, माधुर्यशैली व प्रसादगुण देखने योग्य है-
महेशान्नापरो देवो महिम्नो नापरा स्तुतिः।
अघोरान्नापरो मन्त्रो नास्ति तत्त्वं गुरोः परम्।।
आचार्य रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र भी गौडी शैली व ओजगुणसमन्वित अपने आप में महत्त्वपूर्ण है। उदाहरण हेतु-
प्रफुल्लनीलपङ्कजप्रपञ्चकालिमप्रभा-
वलम्बिकण्ठ कन्दलीरुचिप्रबद्धकन्धरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदान्धकच्छिदं तमन्तकच्छिदं भजे।।
भगवान् शिव की महिमा अपरम्पार है। पुष्पदन्त आचार्य कहते हैं-
असितगिरिसमं स्यात् कज्जलं सिन्धुपात्रे
सुरतरुवरशाखालेखनी पत्रमुर्वी।
लिखती यदि गृहीत्वा शारदा सर्वकालं
तदपि तव गुणानामीश पारं न याति।
।। इति शम्।।
जय जय
ReplyDelete